कुछ स्याह और हो यह शब तो सुकून मिले
तेरी हसरतों से फिर मुझे नया जूनून मिले
मेरी दीवानगी, मेरी तिश्नगी की नज़र हुई
कहूँ तुम से भी अब क्या, कि हम कैसे मिले
हौसला नहीं कि अब खुद को फिर तलाश करूँ
क्या हूँ, कौन हूँ मैं, क्यों अब मुझसे कोई मिले
मेरा सामान तो सब मैंने कब से गिरवी रख छोड़ा है
बिके अब यह कफ़न मेरा तो दो गज़ ज़मीन मिले
पैबंद लाख़ टांक दिए हैं मैंने रूह में अपनी
इस ज़माने में मेरे जैसे कहाँ और रफ़ूगर मिले
3 comments :
Beautifully written!
Thanks a ton
Flow with the tide... hold the reigns when you're losing sight of things...
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