तुम्हारा मेरा यही क्षितिज था
इन्द्रधनुष का दूसरा छोर
पथ की इस द्विशाखा से अब
तुम एक ओर, मैं इक ओर
पीछे छूटी उग्र वो लहरें
किनारे बाँधी मैंने नाव
मैं केवट मेरा इतना ही संग
तारूँ सरिता, पखारूँ पाँव
समय, समर सम सरल नहीं
पृथक पथों का यही विधान है
निश्चय, निर्णय, अनुनय, प्रणय
नियति समक्ष सब समान हैं
बिछोह, विलाप, विरह सब माया
क्षणिक विराम, विश्राम सुयोग है
तुमसे आज्ञा, अनमनी, अनिच्छा
पर इस जीवन अब यही संजोग है
3 comments :
Destiny...
itni achhi Hindi padhe bade din huye! :-)
and i loved the last lines..
@HDWK - Am glad you like it.. It's always wonderful to hear from you.
@Roopa: Yup !! :)
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