Monday, July 9, 2012

तुम्हारा मेरा यही क्षितिज था
इन्द्रधनुष का दूसरा छोर
पथ की इस द्विशाखा से अब
तुम एक ओर, मैं इक ओर

पीछे छूटी उग्र वो लहरें
किनारे बाँधी मैंने नाव
मैं केवट मेरा इतना ही संग
तारूँ सरिता, पखारूँ पाँव

समय, समर सम सरल नहीं
पृथक पथों का यही विधान है
निश्चय, निर्णय, अनुनय, प्रणय
नियति समक्ष सब समान हैं

बिछोह, विलाप, विरह सब माया
क्षणिक विराम, विश्राम सुयोग है
तुमसे आज्ञा, अनमनी, अनिच्छा
पर इस जीवन अब यही संजोग है
 
Feather

3 comments :

Roopa said...

Destiny...

How do we know said...

itni achhi Hindi padhe bade din huye! :-)

and i loved the last lines..

Himanshu Tandon said...

@HDWK - Am glad you like it.. It's always wonderful to hear from you.

@Roopa: Yup !! :)

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