Friday, March 6, 2015

नज़रों से ज़्यादा आज़ाद-गुफ़्तार नहीं कोई
यह वो कहती है जो ज़बान से बयान नहीं होता

होगा कौन और दर्द सा वफादार इस ज़माने में
साथ यह निभाता है जब कोई और नहीं होता

अश्कों सा हौसला किसी और हमराज़ में कहाँ होगा
यह वो आईना है जो टूट भी जाए तो चूर नहीं होता

दिल की बस्ती उजड़ी ज़रूर है फिर एक बार
पर यह वो शहर है जो कभी वीरान नहीं होता

पलट जाते तुम अपनी बात से तो क्या था
तुम्हारी वफ़ादारी पे यूँ फिर मैं हैरान नहीं होता

मेरे सादिक़ , मेरी तौफ़ीक़ का मुझे हौसला मत दे
वो ख़ुदा सबका, किसी शह से अनजान नहीं होता

कोई हबीब ही रास्ता निकाले अब रुख़सती का मेरी
साँस खुद-ब-खुद थम जाने का अब, इंतज़ार नहीं होता

 

Feather


06 Mar 2015
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