A friend made the following post titled ‘Yaas’ on her blog.
Check the blog HEREमैं सदा तेरी किताब के
हाशिये में ही रहा हूँ
मुखपृष्ठ पर, या सहफे पर
कभी नाम नहीं आया मेरा
होली के गुब्बारे में
पानी का वज़न
चाहे जितना हो
वज़ू नहीं करता कोई
उस पीठ पर फूटने वाले से
पानी के कतरे भी
ले कर आते हैं
अपना नसीब
तो मैंने कौन से सपने के तहत पार करना था ?
हाशिये से सहफे का सफर
Click HERE to read the original post.
The thought about having to live on the sidelines and watch your own life treat you like a stranger couldn’t leave me and I built on it and added it as a comment on the original post. Today while going back on a few older posts, I stumbled upon this again.
Sharing my addition here…
पर शायद अच्छा ही हुआ
कि,मैं हाशिये तक ही रहा
एक किनारे से तुझे
उन सफ़ेद पन्नों को
काला, लाल, नीला
करते देखता रहा
सफ़े पे होता तो शायद
तेरी किसी गलती पर
लकीरों के जाल के नीचे
दम तोड़ देता
इस तरह हाशिये से अब मैं
अमिट हो गया हूँ
जब कभी यह किताब अब खुलेगी
मैं इसी किनारे से तुम्हें देखूंगा
और हर बार पन्ना पलटने से पहले
टीस बन तेरे सीने की
आह बन निकलूंगा
हाशिये की ज़िन्दगी से
ज़िन्दगी के हाशिये का सफर
अब तुम्हें मुबारक
मैं इस किताब के रद्दी में
बिकने के बाद भी इस
हाशिये पे तेरी मज़ार की
तरह हमेशा ज़िंदा रहूंगा
3 comments :
Its so beautiful!!!
You sowed the seed HDWK, so thank you for it. :)
maine to yaas par khatm kar diya tha.. yaas se zindagi tak to aap laaye! Meri kahaani bas yaas tak.. yaas se zindagi ka safar.. bada jaanleva !
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