Heard this song from ‘Tera Kya Hoga Johnny’ recently and it kind of stuck. I don’t think that the movie was much of a commercial success but personally I feel it was one good attempt from the Sudheer Mishra’s camp and deserves more acclaim than what it perhaps got.
The song Shab ko roz…had a lot of potential. You can listen to the original HERE. The original lyrics had the following four stanzas to it. I found them intriguing enough to add my own verse and have included my extension here. Read on…
शब को रोज़ जगा देता है
कैसी ख्वाब सजा देता है
मुझे बंद कमरे में रख
क्यों तू पंख लगा देता है
रूह में जब मैं ढलना चाहूँ
तू एक जिस्म बना देता है
जब भी पूछों मैं हाल उसका
मेरी ही ग़ज़ल सुना देता है
------My Extension---------
पल पल भारी रात कटती है
तू उम्र क्यों मेरी बढा देता है
ज़रा मैं एक दर्द भुलाता हूँ
चाहे कितना मैं मुड़ कर जाऊं वो फिर आवाज़ लगा देता है
वो ज़ख्म नया लगा देता है
तू मुझ से यूँ लाख पर्दा कर
वो तेरा सामना करा देता है
दिन भर साँस धुंआ होती है
दिल ऐसी आग जला देता है
रगों में लहू ज़रा थमता है
वो हौसला फिर जगा देता है
6 comments :
subhan allah!!!
Shukriyaa huzoor... :)
too good!
mind-blowing as always.
Wow !!!
Maalik,
Gehraaai hai aapki nazron mein, aapki soch mein aur aapke shabdon mein... Har baar ise padhu toh naya arth nikalta hai..
Fatso!
Post a Comment