तुम में, मुझ में जो समय थाI never thought this would ever be completed. Perhaps still a little far from where I wanted this to be, it somehow scrapes through and manages to make it to this post.
उन पलों की जमा-पूँजी से
अब यादों का सूद आता है
मैं कतरा-कतरा जोड़ रहा हूँ
लम्हा-लम्हा बचा रहा हूँ
तुम्हारे खतों की एक गुल्लक
और लफ़्ज़ों के कुछ सिक्के हैं
तुम्हारे दुप्पट्टे की गांठों में
मैंने सिरहाने छुपा रखे हैं
मैं पुर्ज़ा-पुर्ज़ा समेट रहा हूँ
दिन और पन्ने जला रहा हूँ
हँसने रोने के बही-खाते
और अपने रिश्ते-नाते
बकाया निकलते हैं मुझ पर
कुछ मेरे दिन, कुछ तेरी रातें
मैं हिस्सा-हिस्सा बिक रहा हूँ
किस्सा-किस्सा लुटा रहा हूँ
मेरे ज़हन में दर्ज़ तसवीरें
जाने कब से सहेज रखी थी
इन तस्वीरों के जुड़ते ब्याज से
अब साँसों की किश्त जाती है
मेरे तुम्हारे बीच उस वक़्त का
मैं अब तक हिसाब लगा रहा हूँ
कुछ तेरा, कुछ अपना बाकी
मैं यह क़र्ज़ चुका रहा हूँ
12 comments :
extremely nice... as ever...
Whille reading this post; I was also listening to the song "Aapki yaad aati rahi raat bhar...". Both the post and song are extremely wonderful...
Don’t keep the debt, go back and you shall be reclaimed.
@Roopa, Gaurav: Thanks a ton for your appreciation, just as ever. :)
@Annonymous: Wish you had left a name. :)
Amazing expression of feelings... I suggest you should protect your work and get a copyright :)
good one.
Sonia :)
Splendid!!
Loved every word written and how beautifully u've connected it all.
@Garima, Sonia, Nistha: Thanks a ton for all your encouragement.
I have read this for atleast 10 times and am speechless by the potrayal of emotions. Simply amazing !
@Chiya - Thanks a ton for your kind feedback. Pleasure hearing from you.
after a long time I find something really good.......i read many of your poems and find it extremely marvelous.
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