Again something which I wrote years ago and which did not come to the fore for long. This has been on my website for a while but I guess did not pull many readers. I however, still consider it as one of my better works.
देते हैं आवाज़ घाव, अब भी रह रह कर
होता है इत्मीनान कि, अभी ज़िंदा हूँ मैं
होता है इत्मीनान कि, अभी ज़िंदा हूँ मैं
रोके हुए हूँ सांस कि कहीं धुंआ ना उठे
जलता ज़रूर हूँ, खैर अभी ज़िंदा हूँ मैं
मत दे हौसले मुझे, बरसातें और अभी बाकी हैं
सैलाब सर के ऊपर सही, अभी ज़िंदा हूँ मैं
मायूस मुझ से रहे तू , यह गवारा मुझे कब था
फ़लक से मैं टूटा ज़रूर, गोया अभी ज़िंदा हूँ मैं
फ़लक से मैं टूटा ज़रूर, गोया अभी ज़िंदा हूँ मैं
फना बे-शक हो गयी, दिल से ख्वाहिशें तमाम
फिरता हूँ बे-सबब, मगर अभी ज़िंदा हूँ मैं
फिरता हूँ बे-सबब, मगर अभी ज़िंदा हूँ मैं
रुक ज़रा, तुझ से लफ्ज़ दो-एक मैं सुनता चलूँ
ताक़त-ए-गुफ़्तार ना सही, अभी ज़िंदा हूँ मैं
देख सकता हूँ तुझे, तेरे परदे में पशेमान होते
पलकें मेरी बंद सही, अभी ज़िंदा हूँ मैं
सर पर मेरा आसमान, वो आसमान चाहे गुबार हुआ
काफ़िर हुआ हूँ लेकिन, अभी ज़िंदा हूँ मैं
काफ़िर हुआ हूँ लेकिन, अभी ज़िंदा हूँ मैं
कुछ और मेरे हिसाब की जमा-पूँजी अभी बाकी है
क़यामत के दिन भी कहूँगा, अभी ज़िंदा हूँ मैं
2 comments :
very nice...
Again a good one anyhow I missed reading few :)
Post a Comment