ना रंज किसी से, किसी की उल्फ़त भी नहीं
रोका मुझे किसी मेहरबाँ की बाहों ने नहीं
महकती साँसे नहीं, किसी आरिज़ की शुआएं नहीं
मेरी आँखों को नींद से फिर भी क्यों रफ़ाकत नहीं
(आरिज़ = गाल), (शुआएं = किरणे), (रफ़ाक़त = मित्रता, मेलजोल)
अफ़सुर्दा ज़ीस्त का आलम, बयाँ करे कोई
यख़बस्ता वीरानी की दास्तान दर्ज़ करे कोई
आज़ार दिल पे मुहीत यूँ, की शफ़ा ना कोई
तन्हाई आफ़ताब की बशर ना समझे कोई
(अफ़सुर्दा = मुरझाई हुई), (जीस्त = ज़िंदगी), (यख़बस्ता = जमी हुई), (आज़ार = दुःख, कष्ट), (मुहीत = घेरे हुए),
(आफ़ताब = चाँद), (बशर = इंसान)
पाँव की सलासिल, रगों में लहू जमाये जाती है
मसरूफ़ियत फ़र्दा को भी ग़र्क़ किये जाती है
नसीम-ए-सहर गुलशन से मायूस गुज़र जाती है
शब-ए-मर्ग गुज़रते हुए, गुलों को छेड़ जाती है
(सलासिल = ज़ंजीर), (फ़र्दा = आने वाला दिन), (नसीम-ए-सहर = सुबह की ठंडी हवा), (शब-ए-मर्ग = मौत की रात)
ता-उम्र दिल उसके तंज़-ओ-तल्ख़ियों से शादाँ रहा
वो मेरा ना हुआ, न सही, मैं उसी का रहा
मुख़्तसर, वक़्त-ए-मुलाक़ात यूँ महव रहा
ना उसने नज़र मिलाई, ना मैंने कुछ कहा
(तंज़-ओ-तल्ख़ियों= फब्तियां,कटुता, Sarcasm and bitterness), (शादाँ =खुश), (महव = मग्न, तल्लीन)
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